Saturday, September 4, 2010

धार्मिकता से आध्यात्मिकता




धर्म भगवान के नाम पर एक व्यर्थ की कवायद है. जिससे सिर्फ हानि ही हुई है, मानवता की और कुछ नहीं . मानव जाती पर धर्म एक बहुत बड़ा धब्बा है.

मैंने कहीं पढ़ा है कि धर्म के नाम पर, युद्ध से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं. ये एक  शर्म की बात है, भगवान ने कभी भी नहीं कहा होंगा की धर्म
  के नाम पर हत्याए करो , या धार्मिक बनाओ , या मेरी पूजा करो . लेकिन सारे संसार के सारे धार्मिक नेताओ ने सिर्फ यही एक काम किया है की ज्यादा से ज्यादा लोगो को धार्मिक बनाया जाए.

अब सही अर्थो में जरुरत है की धर्म से आध्यात्मिकता में रूपांतरण हो . जो कोई भी धर्म हो, जो कोई भी भगवान या अवतार हो ,  हम सरल एजेंडा भूल रहे हैं की सभी इंसानों के बीच प्यार और अधिक दोस्ती  हो . हमारे पास लड़ने के अधिक कारण है , बनिस्पत की प्यार के और दोस्ती के. ये मानव युग की और समाज की एक व्यथा ही है.

भगवान तथा भगवान को समर्पित सारे धर्म ग्रंथों और पुस्तकों का एक ही सार है की हम एक दूजे से प्रेम करे , मित्रता का भाव रखे .

मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है.  आईये हम ये प्रण करे की हम धार्मिक से ज्यादा आध्यात्मिक हो , भगवान की creations के प्रति हम प्रेम का भाव रखे , प्रकृति की ओर ध्यान दे, जो हमें जीवन देते है , उन संसाधनों की रक्षा
करे. एक दूसरे को प्यार करे  एक दूसरे की  मदद करे . हम पहले इंसान बने , फिर बाद में ही  एक आदमी या एक औरत.  यही असली धार्मिक प्रयास है और यही भगवान की असली पूजा है .

प्रणाम !!!